Monday, August 24, 2009

सिन्धु स्मृति दिवस

आज अगस्त की चौदहवीं तिथि है बासठ वर्ष पूर्व भी यह तिथि आई थी चौदह अगस्त १९४७ की मनहूस तिथि, सिंधी इतिहास का काला शोकजनक दिवस था इसी दिन, हमे अपनी माता से अलग किया गया था हमे अपना नाम(सिंधी) और भाषा(सिंधी) देने वाली पवित्र भूमि, सिन्धु भूमि, हमारी अपनी मात्रभूमि, हमारी माता, देखते ही देखते, अजनबी और परायी बन गयी
आज हम अपनी मर्जी से वहां जा भी नहीं सकते माता का दर्शन भी नहीं कर सकते कितने न अभागे है हम जननी माँ के घर केवल घुमने, मुलाकात करने के लिए जाने पर भी हमे पासपोर्ट, वीजा लेना पड़े, तरह तरह की पाबंदियों का सामना करना पड़े, पुलिस ठाणे पर हाजिरी देनी पड़े, सी.आई.डी हमारे ऊपर कड़ी निगरानी रखे - इससे अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है? परन्तु करे क्या? मजबूर है हम मजबूरी की हालत में ही, हमे अपना वतन खोना पड़ा राजनेतिक जाग्रति और सूझ बूझ के आभाव में, हम सरल स्वाभाव वाले सिंधियों ने अपने अखिल भारतीय गैर सिंधी नेताओं पर आवश्यकता से अधिक विश्वास किया इनके विश्वासघात के परिणाम हम, अब तक भुगत रहे हैं वर्तमान परिस्थितियों के बदलने की शक्ति हम बटोर नहीं पा रहे हैं वास्तव में, शक्ति प्रदर्शन का सही समय भी अभी तक आ नहीं पाया है तब, इस समय, हम क्या करें?
वर्तमान में, आवश्यकता है, अपनी सिंधी पहचान बनाये रखने की अपनी सिंधियत को सुरक्षित रखने की सिंधियत कायम रही तो एक न एक दिन, हम अपनी माता को गैरों की गुलामी से आजाद कराकर ही दम लेंगे इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है परन्तु यदि सिंधियत ही समाप्त हो गई और अपनी सामाजिक आत्म हत्या करके हम स्थानीय समाज में ही पूरनतया समा गए-घुल गए, तो सारा खेल ख़तम तब तो सर्वनाश निश्चित है
यहूदियों का उदहारण हमारे सम्मुख मशाल का काम कर रहा है- हमे रास्ता दिखा रहा है यहूदियों ने अपनी भूमि को लगभग दो हज़ार वर्षों की लम्बी अवधि के उपरांत पुनः वापस प्राप्त किया इस सफलता के पीछे एक मात्र बड़ा कारण था - यरुशलम को, अपनी याद में संजोये रखना यहूदियों के हर छोटे बडे औरत, मर्द, जवान, बूड़े ने हमेशा अपने धर्म स्थान यरुशलम को दिल में याद रखा
इंशाल्लाह! यहूदियों की भांति हमे दो हज़ार वर्षों तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी और गहरी नींद से जगाने के लिए हमे किसी हिटलर की आवश्यकता नहीं पड़ेगी बर्शते हम अपनी माता सिंधु की स्मृति को अपने हृदयों में स्थायी रूप से संजोये रख सके
अतः १४ अगस्त को " सिंधु को न भुलाओ दिवस " अथवा " सिंधु को याद रखो दिवस " अथवा " सिंधु स्मृति दिवस " के रूप में मनाना होगा इस दिन, संपूर्ण विश्व में फैले हुए सिंधियों को वह सब करना होगा, जो सिंधु को याद रखने में मदद कर सके- सिंधु की स्मृति संजोये रखने में सहायक बन सके इस उदेश्य की प्राप्ति हेतु, विश्व की सिंधी जनता के सम्मुख, निम्न कार्य बिन्दुओं को प्रस्तुत कर रहा हूँ
1) अखिल भारतीय सिंधी संस्थाओं तथा प्रादेशिक सिंधी संस्थाओं को सिंधु प्रान्त के नक्शे छपवाकर वितरित करने चाहिए, जिनको फ्रेम करवाकर प्रत्येक सिंधी परिवार अपने घर के ड्राइंग रूम टांग दे ताकि छोटे बच्चों और सिंधु से बाहर जन्मे नौजवानों को कोतुहल वश उसके बारे में पूछने और हमे उनको माता सिंधु से परिचित कराने का अवसर मिल सके माता सिंधु की यह तस्वीर न केवल कम आयु के सिंधियों अपितु उन बड़े बूड़ों जिन्होने अपनी माता को बिलकुल भुला दिया है, की सोई हुई आत्माओं को जगाने और उनके हृदयों में जाग्रति का संचार करने में यह तस्वीरें(नक्शे) सहायक सिद्ध होगी वर्ष में कम से कम एक बार, १४ अगस्त के " सिंधु स्मृति दिवस " के अवसर पर इन नक्शों को वितरित करने हेतु प्रत्येक शहर में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए
2) १४ अगस्त के " सिंधु स्मृति दिवस " पर सिंधु के संतों, दरवेशों, महापुरषों, महात्माओं, साहित्यकारों, स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों, सिंधु के तीर्थस्थानों व पर्यटन केन्द्रों की तस्वीरों आदि की प्रदर्शनिया भी लगायी जानी चाहिए
3)वृद्ध/बुजुर्ग सिंधी जन, जिन्होने अपनी युवा अवस्था सिंधु भूमि में व्यतीत करी, शीर्ण स्वास्थ्य के कारण, अधिक परिश्रम करने की स्थिति में नहीं है परन्तु वे अधेड़ आयु तथा कम आयु के सिंधियों को सिंधु के बारे में जानकारी करा सकते है - मौखिक रूप से, कैसेटों के माध्यम से तथा पुस्तकों के द्वारा पुणे के श्री लोकराम दोदेजा द्वारा लिखी पुस्तक " विसारियो न विसरन, मुहिंजो वतन, मुहिंजा माणहु " इस दिशा में उपयोगी उधाहरण का काम कर सकती है इसी प्रकार की पुस्तकों द्वारा हम अपने नवयुवकों तक सिंधु की जानकारी एवम स्मृति को पहुंचा सकते हैं १४ अगस्त के " सिंधु स्मृति दिवस " के मौके पर सिंधी संस्थाओं द्वारा आम सभाओं तथा गोष्ठियों का आयोजन करना चाहिए, जहाँ वृद्ध सिंधी जनों, विद्वानों, और सिंधु की जानकारी रखने वालों को आमंत्रित किया जाये, इन्हें सम्मानित किया जाये उनके व्याख्यान कराये जाएँ और पेपर पड़वाये जांए इस प्रकार के कार्यक्रम भी सिंधु भूमि की याद को फिर से जगाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं
4) " सिंधु स्मृति दिवस" मनाने हेतु आयोजित सभों में निम्न प्रतिज्ञा पत्र (Pledge) को सामूहिक रूप से पड़ा व दुहराया जाय:-
“में सिंधी हूँ - इस हिंदुस्तान के उस प्रान्त का मूल निवासी, जिसने इस देश को हिंद का नाम दिया वह प्रान्त जो हिंदुस्तान की पवित्र नदी सिंधु नदी के दोनों किनारों पर बसा हुआ है
१४ अगस्त के " सिंधु स्मृति दिवस " के अवसर पर में शपथ लेता हूँ कि में सिंधु भूमि को कभी भी नहीं भुलाऊंगा जबतक सिंधु पराधीनता से मुक्त हो , में सिंधु माता की अमानत अर्थार्त "सिंधियत" को सुरक्षित रखूँगा और इस के लिए:-
i) अपने परिवार के सदस्यों और सभी सिंधियों के साथ केवल सिंधी भाषा में ही वार्तालाप करूंगा
ii) सभी सिंधियों के साथ केवल सिंधी भाषा में ही पत्राचार करूंगा
iii) अपने बच्चों का रिश्ता केवल सिंधियों के साथ करवाऊँगा अति विशेष अपवादों में, गैर सिंधी पुत्रवधु के, घर आने पर, उसे बोलचाल की सिंधी सीखनी होगी
iv) पारिवारिक उत्सवों में सिंधी लोक गीतों (लाडा) और संगीत का आयोजन करवाऊँगा ताकि सिंधी कलचर जीवित रह रखे
v) सभी सिंधी उत्सवों और व्यवहारों को घूम घाम से मनाऊंगा
vi) जहाँ तक संभव होगा अपने बच्चों को सिंधी शिक्षा वाले स्कूलों में प्रवेश दिलवाऊंगा ऐसे स्कूलों के आभाव में बच्चों को १९४७ वाली सिंधी लिपि में सिंधी सिखाने का इंतजाम घर पर ही करवाऊँगा
vii) आपने घर के ड्राइंगरूम में सिंधु का फ्रेम किया हुआ नक्शा तांगूंगा
viii) जीवन में कम से कम एक बार माता सिंधु के दर्शन हेतु तथा सिंधु के तीर्थस्थानों के दर्शनार्थ सिंधु की यात्रा सुनिशिचित करूंगा
ix) सिंधी उपराष्ट्र की एकता एवम हिन्दुस्तानी राष्ट्र की एकता के लिए आवश्यक मूल सिद्धांतों, धर्मं निरपेक्षता, प्रजातंत्र और अहिंसा में पूरा विश्वास रखूंगा
x) १४ अगस्त का “सिंधु स्मृति दिवस " दुःख, दुआ, प्राय्शिचित व मातम का दिन होने के कारण उस एक दिन के लिए शोक और विरोध सूचक काले कपड़े पहनूंगा
कल पंद्रह अगस्त ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी पाने का दिवस है कुशियों और उत्सव मानाने का दिन है उस दिन हमे अमर शहीद हेमू कालाणी और अन्य शहीदों को याद करना है परन्तु अमर शहीद हेमू कालाणी के सपनो के भारत का वह भू-भाग, जहाँ उन्होंने जन्म लिया, अभी तक स्वतंत्र नहीं हो पाया है भारत के नक्शे को ध्यान से देखने पर स्पष्ट होगा की भारत माता आजाद है परन्तु उनकी दोनों बाहें अभी भी जंजीरों में जकड़ी हुई हैं अतएव, देश की आजादी अभी अधूरी है इस बात का अहसास न केवल सिंधी जनता को, अपितु अन्य हिन्दुस्तानी कौमों को भी करवाना होगा


जय सिंध ! जय हिंद! जय जगत!

2 comments:

  1. sindhu diwas is a great thought,we should implement it with full efforts,we should creat awareness in sindhi samaj,jago sindhi jago-t manwani anand

    ReplyDelete
  2. Sindh hai to Hind hi.
    Garv se kaho main Sindhi hoon.

    ReplyDelete